Monday, March 30, 2009
जरासी आहट होती है...
जरासी आहट होती है तो दिल सोचता है
कही ये वो तो नही.......
छुपके सीनेमें कोई जैसे सदा देता है
श्यामसे पहले दिया दिल का जला देता है
है उसीकी ये सदा, है उसीकी ये अदा
कही ये वो तो नही........
शक्ल फिरती है निगाहोमें वोही प्यारीसी
मेरी नसनसमें मचलने लगी चिंगारीसी
छु गयी जिस्म मेरा किसके दामन की हवा
कही ये वो तो नही........
चित्रपट हकीकत, संगीतकार - मदनमोहन
Sunday, March 29, 2009
बहार...
Saturday, March 28, 2009
फुलोंके रंगसे....
फुलोंके रंगसे, दिलकी कलमसे, तुझको लिखी रोज पाती
कैसे बताउँ किस किस तरहसे पल पल मुझे तू सताती
तेरेही सपने लेकर के सोयाँ तेरे ही यादोमें जागा
तेरे खयालोमें उलझा राहा हुँ जैसे के मालामें धागा
बादल बिजली चंदन पानी जैसा अपना प्यार
लेना होगा जनम हमें कई कई बार
हो इतना मधुर इतना मधुर तेरा मेरा प्यार
लेना होगा जनम हमें कई कई बार
साँसोकी सरगम धडकन की बीना सपनोकी गीतांजली तू
मनकी गलीमें महके जो हरदम जैसे जुही की कली तू
छोटा सफर हो लंबा सफर हो सुनी डगर हो या मेला
याद तू आए मन हो जाए भीडके बीच अकेला
बादल बिजली चंदन पानी जैसा अपना प्यार
लेना होगा जनम हमे कई कई बार
हो इतना मधुर इतना मधुर तेरा मेरा प्यार
लेना होगा जनम हमे कई कई बार
पुरब हो पश्चिम उत्तर हो दक्षिण तु हर जगाह मुस्कुराए
जितना ही जाउँ मै दूर तुझसे, उतनी ही तू पास आए
आँधीने रोका पानी ने टोका दुनिया ने हँसकर पुकारा
तस्वीर तेरी लेकीन लिएमें कर आया सबसे किनारा
बादल बिजली चंदन पानी जैसा अपना प्यार
लेना होगा जनम हमें कई कई बार
हो इतना मधुर इतना मधुर तेरा मेरा प्यार
लेना होगा जनम हमें कई कई बार
गीतकार : नीरज , चित्रपट प्रेमपुजारी
फूल चित्रसौजन्य - ऑर्कुटमित्र
Tuesday, March 17, 2009
सांज.....
तिन्ही सांजा सखे मिळाल्या,
देई वचन तुला
आजपासुनी जीवे अधिक
तु माझ्या ऱ्हदयाला
तिन्ही सांजा...
कनकगोल हा मरिचिमाली
जोडी जो सुयशा
चक्रवाल हे पवित्र
ये जी शांत गंभीर निशा
तिन्ही सांजा....
त्रिलोकगामी मारूत
तैशा निर्मल दाही दिशा
साक्षी ऐसे अमर करूनी हे तव
कर करी धरिला
तिन्ही सांजा...
नाद ऐसा वेणूत
रस जसा सुंदर कवनात
गंध जसा सुमनांत
रस जसा बघ या द्राक्षात
तिन्ही सांजा...
पाणी जसे मोत्यांत
मनोहर वर्ण सुवर्णात
ऱ्हदयी मी साठवी तुज तसा
जिवित जो मजला
गीत : भा. रा. तांबे
सांज ये गोकुळी, सावळी सावळी
सावळयाची जणू साऊली
धूळ उडिवत गाई निघाल्या
शाम रंगात वाटा बुडाल्या
परतती त्या सवे, पाखरांचे थवे
पैल घंटा घूमे राऊळी
पर्वतांची दिसे दूर रांग
काजळाची जणू दाट रेघ
होई डोहातले चांदणे सावळे
भोवती सावळया चाहूली
माऊली सांज, अंधार पान्हा
विश्व सारे जणू होय कान्हा
मंद वार्यावरी वाहते बासरी
अमृताच्या जणू ओंजळी....
गीतकार :सुधीर मोघे
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